"एक सौदा… और कई गलतियाँ – रवि की प्रॉपर्टी बेचने की कहानी"

Total view ( 509 ) || Published: 02-Jun-2025


रवि एक मध्यमवर्गीय परिवार से था, जिसने अपने पसीने की कमाई से पुणे के बाहरी इलाके में एक 2BHK फ्लैट खरीदा था। वक्त बीता, बच्चे बड़े हुए और अब वह शहर बदलकर अपने बेटे के पास दिल्ली जाना चाहता था। इसके लिए उसे अपनी प्रॉपर्टी बेचनी थी। लेकिन रवि को क्या पता था कि एक साधारण-सी लगने वाली प्रॉपर्टी डील, अगर सही तरीके से न की जाए, तो कितनी बड़ी परेशानी बन सकती है

यह कहानी सिर्फ रवि की नहीं, हर उस इंसान की है जो बिना तैयारी और जानकारी के अपनी प्रॉपर्टी बेचने निकल पड़ता है।

जल्दबाज़ी में पहला कदम

रवि ने जैसे ही अपने दोस्तों को बताया कि वो फ्लैट बेचना चाहता है, एक दोस्त ने कहा, “मुझे एक ब्रोकर जानता हूं, जल्दी से बेच देगा। बस उसे कॉल कर।”

बिना ज्यादा पूछताछ किए रवि ने उस ब्रोकर को बुला लिया। ब्रोकर ने झटपट फोटो खींची और कहा, “सर, मैं 60 लाख में बेच दूँगा, फुल पेमेंट 30 दिन में।” रवि को खुशी हुई और उसने हाँ कह दिया।

🔴 पहली गलती: बिना मार्केट वैल्यू देखे प्रॉपर्टी लिस्ट करना।
उसके ही अपार्टमेंट में दूसरे फ्लैट 68–70 लाख में बिक रहे थे। मगर उसे ये जानकारी नहीं थी।

दस्तावेज़ों की अनदेखी

ब्रोकर ने रवि से कहा, “सर, बस सेल डीड और लाइट बिल दो, बाकी सब मैं देख लूँगा।” रवि ने फाइलें टटोलकर कुछ पुराने पेपर्स दे दिए।

जब खरीदार साइट पर आया, तो बोला, “सर, आपके पास एनओसी है क्या सोसायटी की?”
रवि चौंका — NOC?

🔴 दूसरी गलती: दस्तावेज़ अधूरे थे – ना NOC था, ना म्युटेशन अपडेट।
खरीदार ने मना कर दिया और रवि का एक संभावित सौदा चला गया।

 खरीदार से बिना जांच के डील

कुछ दिन बाद एक और खरीदार आया, जो खूब बातूनी था। उसने रवि को यकीन दिलाया कि वह तुरंत पेमेंट करेगा और बोला, “मैं 62 लाख दूँगा – डील पक्की।”

रवि खुश हुआ और अग्रीमेंट तैयार कर लिया। खरीदार ने 1 लाख का एडवांस दिया और कहा, “बाकी पेमेंट 15 दिन में।”
15 दिन बीते, फिर 20, फिर 30… ना कॉल, ना मैसेज।

🔴 तीसरी गलती: खरीदार की बैकग्राउंड जांच नहीं की और पूरी डील उस पर टिका दी।

जब रवि ने पता करवाया, तो वो आदमी कई प्रॉपर्टी डील में इसी तरह टाइम पास करता था।

 टैक्स का झटका

आखिरकार रवि ने एक अच्छा खरीदार पाया, और डील 65 लाख में फाइनल हुई। सारे पेपर्स बन गए, पेमेंट भी हो गया।

लेकिन असली मुश्किल तब आई जब CA ने बोला, “सर, आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होगा।”

रवि हैरान, “वो क्या होता है?”

🔴 चौथी गलती: टैक्स की जानकारी न लेना।
CA ने बताया कि उसे लगभग 4 लाख का टैक्स भरना पड़ेगा।

अगर वह टैक्स सेविंग स्कीम (जैसे सेक्शन 54 के तहत दूसरी प्रॉपर्टी खरीदता) अपनाता, तो यह टैक्स बच सकता था।

घर की सच्चाई छुपाना

रवि का फ्लैट 10 साल पुराना था। बालकनी में पानी रिसता था, बाथरूम में टाइल्स उखड़ चुकी थीं। लेकिन उसने खरीदार को बस एक सुंदर फोटो दिखाया।

जैसे ही खरीदार ने साइट विज़िट की, उसने इन सब चीज़ों पर सवाल उठाए। उसने कीमत घटाने को कहा।

🔴 पाँचवीं गलती: प्रॉपर्टी की स्थिति छुपाना।
रवि को 1.5 लाख रुपए कीमत कम करनी पड़ी।

 बिक्री समझौता बिना लीगल सलाह के

रवि और खरीदार ने सेल एग्रीमेंट साइन किया, लेकिन रवि ने वकील से चेक नहीं करवाया।

बाद में खरीदार ने क्लॉज का हवाला देकर पोजेशन में 2 महीने की देरी कर दी — क्योंकि एग्रीमेंट में टाइमलाइन क्लियर नहीं थी।

🔴 छठी गलती: लीगल एग्रीमेंट में क्लॉज ध्यान से न डालना।

ब्रोकर का कमीशन विवाद

ब्रोकर ने रवि से 2% कमीशन की मांग की, लेकिन रवि को लगा कि उसने तो सिर्फ 1% की बात की थी।

बात इतनी बढ़ गई कि ब्रोकर ने डील रोकने की धमकी दे दी।

🔴 सातवीं गलती: ब्रोकर के साथ लिखित एग्रीमेंट न करना।

 म्युटेशन अपडेट न कराना

डील पूरी होने के बाद जब खरीदार रजिस्ट्रेशन के लिए गया, तो उसे पता चला कि जमीन का म्युटेशन रवि के नाम नहीं था — अब तक किसी पुराने मालिक के नाम पर ही था।

🔴 आठवीं गलती: म्युटेशन अपडेट न कराना।
इससे खरीदार का बैंक लोन रुक गया और रवि को तहसील ऑफिस के चक्कर काटने पड़े।

बाजार का समय न समझना

रवि ने जब फ्लैट बेचा, उस वक्त मार्केट में मंदी थी। कुछ ही महीनों बाद वही प्रॉपर्टी 72 लाख में बिकी।

🔴 नौवीं गलती: सही समय का इंतज़ार न करना।

 भावनात्मक निर्णय लेना

रवि को अपना फ्लैट बहुत प्यारा था, इसलिए उसने शुरू में बहुत ज़्यादा कीमत मांगी। इससे कई खरीदार मुँह मोड़ गए।

बाद में थक हारकर उसने प्रॉपर्टी कम कीमत पर बेच दी।

🔴 दसवीं गलती: भावनाओं में बहकर निर्णय लेना।

इन सभी गलतियों से गुज़रने के बाद रवि को समझ आ गया कि प्रॉपर्टी बेचना आसान नहीं होता। उसे अब पता था कि —

  • दस्तावेज़ों की तैयारी पहले करनी चाहिए।

  • मार्केट वैल्यू का सही अंदाज़ा ज़रूरी है।

  • टैक्स और लीगल सलाह लेना अनिवार्य है।

  • ब्रोकर और खरीदार दोनों की सत्यता जांचना आवश्यक है।

रवि की कहानी हमें सिखाती है कि प्रॉपर्टी बेचना केवल एक लेन-देन नहीं है, यह एक योजना, तैयारी और सही निर्णयों का मिश्रण है। अगर आप जल्दबाज़ी, अधूरी जानकारी, और बिना सोच के कदम उठाते हैं — तो नुकसान तय है।

इसलिए अगली बार जब भी आप प्रॉपर्टी बेचने का विचार करें — तो रवि की गलतियों से सीख लें।

Write a comment


No comments found.

Banner Image